इस कहानी में लेखक ने एक मादा गौरैया व नर गौरैया के माध्यम से यह बताना चाहा है कि किस प्रकार राजा अपनी प्रजा से मुफ़्त में कार्य करवाने में संकोच नहीं करता और प्रजा अभावों में जीते हुए भी राजा को मना नहीं कर पाती। शोषण प्रवृत्ति को दर्शाया गया है।
 
(नोट- कहानी में तर गौरैया को गवरा व मादा गौरैया को गवरइया के नाम से पुकारा गया है।)
 
1. पाठ का सार
 
नवरा व गवरडया का अटूट संबंध - गवरा और गवरइया दोनों पक्के मित्र थे सदा साथ-साथ रहते। साथ हँसते साथ रात एक साथ खात-पीते व सांत थे। प्रातःकाल होते हो घोसले से दाना चुगने के लिए निकल पड़ते। शाम होने पर लौटते फिर अपने अनुभवों का आदान-प्रदान करते थकान मिटाते व सो जाते।
 
गवरड़या का गवरा को आदमी के बारे में बताना - एक दिन गवरइया में गवरा को आदमी के बारे में बताया कि आदमी रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर कितना जँचता है। गवरा के विपरीत विचार- गवरा में तपाक से उसे कहा- क्या जँचता है? कपड़े पहनकर तो आदमी बदसूरत लगता है। अपनी खूबसूरती तो ढक लेता है।
 
गवरड़या का अपने विचार पर अटल रहना - गवरइया ने कहा आदमी कपड़े मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है।
 
गवरा द्वारा गवरइया को सही वक्तव्य देना - गवरा ने कहा कि कपड़े पहनने से आदमी की गरमी सरदी व बरसात जैसे मौसमों को सहन करने की शक्ति समाप्त हो जाती है, साथ ही वह कैसे कपड़े पहनता है उसकी औकात भी झलकने लगती है। इसी से आदमी की हैसियत का भेद सामने आता है। न जाने क्यों आदमी हाथ पैर सिर सब ढक लेता है।
 
गवरश्या का आदमी की टोपी को अच्छा बताना - गवरइया ने गवरा से कहा कि आदमी के सिर पर टोपी बहुत अच्छी लगती है। मेरा मन भी टोपी पहनने को करता है।
 
गवरा का हैरान होना - गवरडया की बातें सुनकर गवरा हैरान हो गया। उसने कहा तू टोपी पहनेगी। टोपी के लिए तो कितने राजपाट उलट जाते हैं जरा सी गलती होने पर टोपी उछल जाती है अर्थात् बेइज्जती हो जाती है। लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु न जाने कितनों को टोपी पहनाते हैं अर्थात् बेवकूफ बनाते हैं। वह गवरइया को सलाह देता है कि तू टोपी के चक्कर में मत पड़।
 
गवरइया की धुन - गवरइया तो अपनी धुन की पक्की और जिद्दी थी। वह कहाँ मानने वाली थी? उसने तो टोपी पहनना अपना लक्ष्य हो बना लिया।
 
गबरड़या को रुई का फाहा मिलना - अगले दिन गवरइया और गवरा कूड़े के ढेर पर चुग रहे थे कि चुगते- चुगते गवरया को रुई का एक फाहा मिल गया। वह अत्यधिक प्रसन्न हो गई।
 
गवरा का गवरइया को समझाने का प्रयास - गवरा ने गवरइया को समझाने का प्रयास किया कि वह इस चक्कर में न पड़े। उसने उसे समझाना चाहा कि एक बार एक बावरा था अर्थात् बेवकूफ था उसे एक दिन एक चाबुक मिल गया। अब वह सोचने लगा कि चाबुक तो मिल गया घोड़ा, लगाम और जोन' भी कहाँ न कहाँ से मिल जाएँगे। सारी उम्र वह यही सोचता रहा। इसी प्रकार रुई के फाहे से टोपी बनाने का सफर भी बहुत लंबा है उसे यह विचार त्याग देना चाहिए।
 
गवरइया की अटल चाह - गवरइया की धुन पक्की थी। वह हर हाल में टोपी बनवाना चाहती थी।
 
गवरइया का टोपी बनाने का सफर - सबसे पहले वह धुनिया के पास गई कि मेरी रुई को धुन दो वह। बेचारा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। तार-तार हुआ वस्त्र उसने पहना हुआ था। उसने कहा कि मैंने राजा को रखाई बनानी है और तुम आ गई मुफ्त में रुई धुनवाने गवरइया ने उसे कहा रुई धुन दो आधी रुई तुम्हारी धुनिया ने जल्दी ही रुई धुन डाली क्योंकि 16 आने के काम में उसे आठ आने मजूरी मिल रही थी।
 
फिर वह चल दी कई काटने वाले कोरी के पास वह भी राजा की अचकन के लिए सूत कात रहा था। उसके शरीर के वस्त्र भी वार वार हुए पड़े थे। वह भी गया की कई कालने को तैयार न था लेकिन गवरइया में उसे कहा कि तुम कई काली। मुआवजे में आधा तुम रख लेना और आधा मुझे दे देना। कोरी भी झट से काटने को तैयार हो गया। अब गवरहया को तलाश थी एक बुनकर की जो उसका सूत बुन दे और टोपी के लिए कपड़ा तैयार हो जाए। गवरइया एक बुनकर के पास गई और प्रार्थना कर सूत का कपड़ा बनाने को कहने लगी। चुनकर ने कहा कि उसे तो राजा का बागा बुनना है. वह उसका काम नहीं कर सकता। गवरया ने उसे कहा कि हम मुफ़्त में काम नहीं करवाएँगे, तुम इसमें से आधा कपड़ा ले लेना। अब तो बुनकर ताना-बाना बुनने लगा क्योंकि उसने सोचा कि सौदा बुरा नहीं है। उसने थोड़ी ही देर में घना और मोटा कपड़ा बुन दिया।
 
गवरइया बुनकर से कपड़ा लेकर दर्जी के पास पहुँची और कहने लगी दरजी भैया! दरजी भैया इस कपड़े की एक दोपी सिल दो। दरजी ने रोष से कहा कि राजा की सातवीं रानी से नौ बेटियों के बाद दसवाँ बेटा पैदा हुआ है। मुझे उसके ढेरों सिलने हैं। गवरइया ने उसे कहा कि वह उस कपड़े से दो टोपियाँ सिल लें एक स्वयं रखे व एक उसे दे दे इतना सुनना था कि दरती ने झट से दो टोपियाँ सिल दो और खुश होकर एक टोपी पर पाँच फुंदने भी लगा दिए।
 
गवरड्या का प्रसन्न होना - फुंदने वाली टोपी पहनकर गवरइया अपने आप में न रही। वह तो प्रसन्नता से उछलने-कूदने लगी।
 
गवरा द्वारा गवरइया की प्रशंसा करना - गवरा ने गवरया से कहा कि तू तो रानी लग रही है।
 
गवरड्या को अपने - आप पर अभिमान गवरइया सोचने लगी कि अब उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। उसके मन में इच्छा जागृत हुई कि एक बार इस राज्य के राजा को भी देखकर आए कि राजा कैसे इतने सारे काम एक साथ करता है।
 
गवरड्या का राजा के महल के कंगूरे पर जाना - चिड़िया राजा के महल के कगूर पर जाकर बैठ गई। राजा अपने सेवकों से खुली धूप में खुशबूदार तेल से मालिश करवा रहा था। गवरइया राजा को देखते हो कहने लगी कि मेरे सिर पर टोपी,लगी। राजा के सिर पर टोपी नहीं।
 
राजा का संचेत होना - गवरइया के यह कहने पर कि उसके सिर पर टोपी है पर राजा के सिर पर नहीं है, राजा सचेत हो गया। अपने सिर पर हाथ रखकर बोला कि जल्दी से कोई मेरी टोपी लाओ। राजा ने टोपी पहनी। अब गवरइया ने नया गुग अलापना शुरू किया कि मेरी टोपी पर पाँच फुंदने राजा की टोपी पर एक भी नहीं।
 
राजा का क्रोधित होना - राजा को बेहद शर्म महसूस होने लगी। उसे लगा कि महाबली राजा के सामने एक चिड़िया की यह हिम्मत कि वह राजा को नीचा दिखाए। राजा ने हुक्म दिया कि इस गौरैया की गर्दन मसल दो और पंख नोच डालो। मंत्री ऐसा करने को तैयार न थे। उन्होंने राजा से भी ऐसा करने को मना किया लेकिन राजा न माना। गवरइया की टोपी का नीचे गिरना- एक सिपाही ने राजा के हुक्म के अनुसार गवरइया की टोपी को गुलेल के साथ नीचे गिरा दिया।
 
राजा का आश्चर्यचकित होना - राजा ने टोपी को मसलने हेतु कदम बढ़ाया ही था कि टोपी की खूबसूरती देखकर दंग रह गया। वह सोचने लगा कि मेरे राज्य में ऐसी सुंदर टोपी मेरे सिवा किसी दूसरे के पास कैसे पहुँची।
 
दरजी की खोज - राजा ने उस दरजी की खोज करवानी चाही जिसने इतनी सुंदर टोपी बनाई थी। बड़ी मुश्किल से वह दरखी मिल गया।
 
राजा का टोपी के बारे में पूरी जानकारी हासिल करना - राजा ने दरजी से पूछा कि तुमने इतनी बढ़िया टोपी हमारे लिए क्यों नहीं बनाई? राजा की बात का जवाब देते हुए दरजी ने कहा कि कपड़ा बहुत बढ़िया था। फिर चुनकर को बुलाया गया। उसने कहा कि राजा जी सूत बहुत अच्छा था। एकदम महीन और लच्छेदार फिर कोरी को बुलाया गया। उसने कहा कि रुई बहुत बेहतरीन थी, एकदम बादलों को तरह धुनी हुई। अंत में धुनिया हाजिर हुआ। उससे राजा ने कहा कि तुम चारों में मिलकर गवरइया के लिए इतना अच्छा काम किया लेकिन हमारे लिए क्यों नहीं किया? धुनिया ने राजा से दंडित न किए जाने का दान माँगा और जब राजा ने हाँ कर दी तो उसने हिम्मत से कहा कि गवरइया के पास कुछ भी न होते हुए वह जो काम करवाती पारिश्रमिक में आधा भाग दे देती लेकिन जिसके पास सब कुछ है वह कुछ भी नहीं देता।
 
गवरड्या का चिल्लाना - गवरइया फिर जोर-जोर से चिल्लाने लगी कि राजा देख लें। सभी को पूरा दाम दिया है। यह राजा तो कंगाल है, इसका धन घट गया है। इससे तो टोपी तक नहीं बनवाई जाती. तभी तो मेरी टोपी छीन ली।
 
राजा का अचरज में आना - राजा हैरान था कि एक तो सभी कारीगरों द्वारा गवरइया की मदद करना, उसकी टोपी का गवइया की टोपी से कम खूबसूरत होना व तीसरा उस गौरैया द्वारा उसकी यह पोल खोलना कि राजा के खजाने में धन कम हो रहा है।
 
यह सत्य था क्योंकि मुफ्त में मजदूरी करवाने, सख्ती से लगान वसूलने के बावजूद भी राजा का खजाना खाली हो रहा था। ऐशोआराम का जीवन, इतनी सेना और इतने सामान का बोझ संभालने में राजा को मुश्किलें आ रही थीं।
 
तमाशा खड़ा करना - गवरड़या के चिल्लाने से तमाम लोग घरों से निकल आए। मंत्री ने भी कहा कि यह तो राजा का भेद हो खोल देगी।
 
राजा का घबरा कर टोपी वापिस करना - अब राजा घबरा रहा था। उसने कहा कि इस गौरैया की टोपी वापिस कर दो सिपाहियों ने कंगूरे को और टोपी उछाल दी।
 
गवरड्या का उड़ना - गवरइया ने टोपी पहनी और उड़-उड़कर कहने लगी कि यह राजा तो डरपोक है। यह तो मुझसे भी डर गया।
 
राजा का खून के आँसू पीकर रह जाना - राजा का जब गौरैया पर बस न चला तो उसने मंत्री से कहा कि कौन इस मुँहफट के मुँह लगे। यह कहकर राजा ने कसकर अपनी टोपी पकड़ ली।